“ इबादत
के दिन हैं ”
ग़ज़ल
जोश ओ जूनून और
जज्बात के दिन हैं .
वतन की खातिर मर मिटे ,ऐसे
ख़यालात के दिन हैं.
सूखे
हुए दरख़्त भी अब हो गए हैं सब्ज.
चाहत
ने ली अंगड़ाई, अब
बरसात के दिन हैं.
पहचानते नहीं हैं जो रहके भी साथ साथ,
अब ऐसे पड़ोसियों से मुलाकात के दिन हैं.
तारीख
हो गए हैं चैन औ सकूं के दिन ,
जिधर
देखो उधर ही फसादात के दिन हैं.
लगता है कि आया है अब मौसम चुनाव का,
बे मतलब कि तकरीर औ बयानात के दिन हैं.
ग़ुनाहों
की जिंदगी से कर ली है तौबा,
अब
तो ऐ ' राज
' इबादत
के दिन हैं.
राज कुमार