Saturday 15 October 2016

सिनेमाहॉल की रिकॉर्डिंग

   सिनेमा हॉल की रिकार्डिंग 


हमारे जैसे लोगों को बहुत से पुराने फिल्मी गाने अभी तक याद हैं. मैं पुराने दिनों को याद करता हूँ तो अपने संबंध में मुझे मुख्य रूप से इसके दो कारण लगते हैं. पहला रेडियो. अपने स्कूल के दिनों में रेडियो हमारे मनोरंजन का लगभग एकमात्र साधन था.रेडियो पर बराबर गानों को सुनते रहने से अधिकांश गाने याद हो जाते थे. रेडियो की बातें मैं फिर कभी करूंगा. आज एक दूसरे चीज की चर्चा करूंगा. उस समय हमारे कस्बे में एक मात्र सिनेमा हॉल हुआ करता था और उसमें तीन शो चलते थे मैटिनी, इवनिंग एवं नाइट शो. सिनेमा हॉल के सबसे ऊपर एक लाउडस्पीकर लगा हुआ होता था. जब भी शो शुरू होने वाला होता था तो लगभग आधे घंटे पहले उस लाउडस्पीकर से गाने बजने लगते थे जो शो के शुरू होने तक बजते रहते थे. इस लाउडस्पीकर की आवाज लगभग पूरे गांव में सुनाई पड़ती थी. लाउडस्पीकर की आवाज एक तरह का संकेत थी कि शो अब शुरू होने वाला है. हमारे कस्बे में आम बोलचाल की भाषा में सिनेमा हॉल से बजने वाले गाने को रिकार्डिंग (recording) कहा जाता था. यानि सिनेमा हॉल से रिकार्डिंग चालू होने का अर्थ था एक शो समाप्त हो गया और दूसरा शो शुरू होने वाला है. मान लो कि दो दोस्त फिल्म देखने जाने वाले हैं. वे आपस में बात करेंगे - "यार रिकार्डिंग शुरू हो गई है, जल्दी सिनेमा हॉल चलते हैं." मान लीजिये कि किसी स्त्री का पति सिनेमा देखने इवनिंग शो गया है और घर पर पत्नी उसके लौटने का इंतजार कर रही है. तो उसके कान रिकार्डिंग सुनने के लिये लगे रहते हैं. जैसे ही शो खत्म होता है और रिकार्डिंग चालू होती है, पत्नी समझ जाती है कि पति अब कुछ ही देर में घर पहुंचने वाला है. अब आप पूछेंगे कि रिकार्डिंग का मतलब तो गाना रिकार्ड करना होता है, न कि  लाउडस्पीकर पर गाना बजाना. बिलकुल ठीक. लेकिन हमारे गाँव का यही रिवाज था. शायद अन्य जगहों पर भी हो.
अब एक बात और. हमारे गाँव के सिनेमा हॉल की 'रिकार्डिंग' में एक और खासियत थी. वो ये कि जब भी किसी खास फिल्म के गानों को बजाया जाता था तो अगले एक महीने तक उन्ही कुछ गानों को बार बार बजाया जाता था. जाहिर है कि जब एक ही गाने को बार बार दिन में कम से कम तीन बार रोज सुना जायेगा तो वह गाना धुन सहित याद हो ही जायेगा. यानी सिनेमा हॉल की 'रिकार्डिंग' सुनकर लोगों के दिमाग में उन गानों की एक तरह से रिकार्डिंग हो जाती थी.
इस तरह बहुत से पुराने गानें सिनेमा हाल की रिकार्डिंग की बदौलत अभी भी हमें याद है. हालांकि कभी कभी गाने इतने चालू किस्म के होते थे कि दो चार दिन सुनने के बाद ही लोग उब जाते थे. जैसे एक गाना था - "बैठ जा बैठ गइ, खड़ी हो जा खडी हो गइ" दूसरी बात, जो गाना सिनेमा हॉल से बज जाता था उसे दुबारा रेडियो पर सुनने की हिम्मत नहीं होती थी.
द्वारा राज कुमार