आध्यात्मिकता क्या है? पूजा पाठ एवं सामान्य धार्मिक आचरण से यह किस प्रकार भिन्न है? हम आध्यात्मिक कैसे हो सकते हैं? इससे फायदे क्या हैं और क्यों हमें आध्यात्मिकता की ओर बढ़ने का प्रयास करना चाहिए? इन सभी प्रश्नों पर मैं विचार करता रहा हूं और अपने इतने वर्षों के अनुभव, अनुभूति और चिन्तन के आधार पर मै यहां इनका उत्तर ढूंढने का प्रयास करूंगा।
देखा जाए तो हम सब जीवन का मुख्य उद्देश्य खुशी या आनन्द की प्राप्ति मानते हैं और हमारा जो भी कार्य व्यापार है वह इसी उद्देश्य के इर्द गिर्द घूमता है। ये आनन्द हमें कहां से मिल सकता है? क्या सांसारिक वस्तुओं या व्यक्तियों से? दुर्भाग्य से ज्यादातर लोगों की यही सोच है। लोग सांसारिक वस्तुओं या व्यक्तियों को प्राप्त करने और उसी में अपनी खुशी ढूंढने में लगे रहते हैं। मगर यह तो सत्य है न कि सांसारिक वस्तुएं क्षणभंगुर होती हैं। तो फिर उन पर टिकी हुईं खुशियां कितनी देर तक साथ देंगी?
तो क्या इन्हें मोह माया का बंधन समझ कर सर्वथा त्याग देना चाहिए? मेरे विचार से इसकी जरूरत नहीं है। हमें सांसारिक वस्तुओं या व्यक्तियों का त्याग करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि अपना नजरिया बदलने की आश्यकता है। हमें अपनी सोच और जीवन पद्धति बदलनी होगी और यह सोच और जीवन पद्धति होगी आध्यात्मिकता से ओत प्रोत।
पूजा पाठ से यह किस प्रकार भिन्न है? मेरा मानना है कि पूजा पाठ और धार्मिक आचरण का भी अंतिम उद्देश्य मनुष्य में आध्यात्मिकता जगाना ही होता है जिसके द्वारा सच्चे आनन्द की प्राप्ति की जा सकती है।
प्रश्न है कि आध्यात्मिकता की प्राप्ति कैसे की जा सकती है? इसका पहला चरण होगा अपने मन और आत्मा को निर्मल और शांत करना क्योंकि आध्यात्मिकता के वाहक मन और आत्मा ही है। सबसे पहले मनुष्य जनित बुराइयों को इनसे हटाना होगा जैसे क्रोध, लोभ, भय, घृणा, ईर्ष्या, अहम आदि। मन और आत्मा जैसे जैसे पवित्र और शांत होती जाएगी वैसे वैसे आध्यात्मिकता को जगाने में आसानी होगी। पूजा पाठ एवं धार्मिक आचरण का उद्देश्य भी सच पूछा जाए तो मन और आत्मा को निर्मल और शांत करना ही होता है जिससे हम और आगे के जीवन उद्देश्य की ओर बढ़ सकें।
क्या बिना आध्यात्मिकता के हम जीवन में सुखी और खुश नहीं रह सकते?
हमारा जीवन बड़ा ही उलझा हुआ है। यह सिर्फ वस्तुओं पर निर्भर नहीं है बल्कि व्यक्तियों, परिस्थितियों,समय और संयोग पर भी निर्भर है। जब तक सब कुछ हमारी इच्छा, आकांक्षा और प्लांनिंग के हिसाब से चलता है तब तक तो सब कुछ ठीक मालूम पड़ता है। मगर जीवन में सब कुछ हमारे चाहने के मुताबिक नहीं होता। कल्पना करें कि एक हंसता खाता पीता खुश मध्यम वर्गीय परिवार है जिसमें सब कुछ ठीक चल रहा था। अचानक एकमात्र बेटा किसी दुर्घटना में अपाहिज होकर बेड पर आ जाता है और कोइ काम लायक नहीं रहता है या दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो जाती है।
एक दूसरे उदाहरण में परिवार का एकमात्र कमाने वाला मुखिया अचानक लाइलाज कैंसर से ग्रस्त होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
अब क्या वह परिवार खुश रह पाएगा या उसकी जिन्दगी दुख के अथाह सागर में डूब जाएगी। अब ऐसी परिस्थिति में अगर उस परिवार ने अपने अंदर आध्यात्मिक दृष्टिकोण विकसित किया होता तो वह इस दुख का सामना आसानी से कर सकते थे।
आज का जीवन तनाव से भरा है। कभी सोचा है कि इस तनाव का प्रमुख कारण क्या है। हमारा जीवन तनाव से भरा है और फिर भी हम सोचते हैं कि हम खुश हैं। काम का तनाव, परिवार का तनाव और संबंधों का तनाव तो अपनी जगह है ही। मगर बहुत सी छोटी छोटी चीजों में भी हम तनाव ग्रस्त हो जाते हैं जिनसे चाहे तो हम बच सकते हैं। आजकल तो मोबाइल में बैटरी कम हो जाती है तो हम तनाव में आ जाते हैं। वाई फाई का सिग्नल नहीं आ रहा है तो तनाव में हैं, टैक्सी बुक करने पर टैक्सी नहीं आती है तो हम तनाव में आ जाते हैं। गाड़ी ड्राइव करके शहर में कहीं जा रहे हो तो पूरे रास्ते हमारा तनाव देखने लायक होता है।
आजकल सोशल मीडिया पर एक जोक चल रहा है कि "जो व्यक्ति घर से ऑफिस कार ड्राइव कर के जाते समय पूरे रास्ते किसी को गाली न दे तो समझो कि उसने परम शांति की प्राप्ति कर ली है।" पारिवारिक तनाव की भी कमी नहीं है। संतान अगर नालायक निकल गया, पति अगर शराबी या निठल्ला निकल गया, पति पत्नी का एक दूसरे के प्रति व्यवहार ठीक नहीं है तो, बहू अच्छी नहीं है या सास अच्छी नहीं है आदि आदि। ये सारी चीजे तनाव पैदा करती हैं। बहुत सारा तनाव तो सिर्फ इसलिए पैदा हो जाता है कि हम अपनी उम्मीदों (expectations) को बढ़ा चढ़ा कर रखते हैं और अगर ये उम्मीदें पूरी नहीं होती है तो फिर हम तनाव में आ जाते हैं। अगर इस तरह तनाव हम पर हावी रहेगा तो हम खुश होने का दावा कैसे कर सकते हैं? देखा जाय तो जिन सांसारिक वस्तुओं या व्यक्तियों से हमें खुशी मिलती है वे ही परिस्थिति बदलने पर दुख का कारण बन जाते हैं।
तो क्या बुरी परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी होने दे और अपने जीवन को तनाव ग्रस्त बना लें? बिल्कुल नहीं। ऐसा होने दिया तो जीवन न केवल दुखमय होते जाएगा बल्कि कई तनाव जनित मनो वैज्ञानिक समस्याएं भी पैदा हो जाएगी जैसे अवसाद यानि डिप्रेशन। और जब मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा होगी तो बुरा प्रभाव शारीरिक स्वास्थ पर भी पड़ेगा।
मेरा इस संबंध में एक सिद्धांत (motto) है कि "Try for the best but be prepared for the worst" यानी सबसे अच्छे के लिए प्रयास करें लेकिन सबसे खराब के लिए तैयार रहें।
आपने देखा होगा कि बहुत से लोगों के पास सारी सुख सुविधाएं होती हैं फिर भी वे दुखी और उदास हैं, क्यों। क्योंकि जीवन के प्रति उनका नजरिया सांसारिक है, आध्यात्मिक नहीं।
याद रखिए जब तक जीवन के प्रति नजरिया नहीं बदलेगा तब तक जीवन सुखी और आनंदमय नहीं रहेगा।
अपना नजरिया कैसे बदलें? सांसारिक वस्तुओं या व्यक्तियों से अपना लगाव (attachment) कम करते जाना और शाश्वत शक्तियों में अपने विश्वास को बढ़ाते जाना। यह शाश्वत शक्ति आपकी आत्मा भी हो सकती है, दूसरे व्यक्ति की आत्मा हो सकती है, प्रकृति या परम आत्मा भी हो सकती है। आपका लगाव व्यक्ति के शरीर से नहीं उसकी आत्मा से होना चाहिए। आपका लगाव वस्तुओं से नहीं होना चाहिए। वस्तुओं को आप एक साधन से ज्यादा कुछ नहीं माने। उदाहरण के लिए आपके पास एक कार है तो उसे एक संपत्ति मान कर उससे लगाव न रखें बल्कि उसे मात्र एक यातायात का साधन माने। अगर आपके पास मंहगे कपड़े हैं तो इन्हे तन ढकने का एक साधन मानिए और कुछ नहीं। अपनी पारिवारिक जिम्मेवारियों का निर्वहन ये सोच कर करें कि आपको यह एक रोल दिया गया है और बाकी लोग भी जीवन के रंग मंच पर अपना रोल निभा रहे हैं। फिर उनसे इतना लगाव (attachment) क्यों? लगाव आत्मा से रखें, शरीर से नहीं।
अपना ध्यान (फोकस) बाहरी दुनिया से हटाकर आंतरिक दुनिया (inner self) की तरफ ले जाएं।
प्रतिदिन कुछ समय के लिए एकांत में बैठकर शाश्वत के प्रति ध्यान करना भी काफी उपयोगी सिद्ध होता है।
आजकल बहुत से लोग देर से सोते हैं और सोने से पहले मोबाइल में व्यर्थ की बातों में समय बर्बाद करते हैं जिससे तनाव में वृद्धि ही होती है और ठीक से नींद नहीं आती है। इसलिए सोते समय मन को शांत करने का प्रयास करना चाहिए और इसके लिए आध्यात्मिक वाणी सुननी चाहिए या आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़नी चाहिए।
आध्यात्मिकता जगाने के लिए हमें अपने अंदर सकारात्मकता भी जगानी होगी। किसी व्यक्ति, वस्तु या घटना के सकारात्मक पहलू पर ही ध्यान देना होगा। इससे हमारा तनाव कम होगा और मन शान्त करने में मदद मिलेगी।
कभी आपने सोचा है कि किसी महा पुरुष या धार्मिक गुरु के पास जाने से क्या लाभ होता है।वहां जितनी देर तक हम उस महा पुरुष के प्रवचन या वाणी सुनते हैं उतनी देर तक के लिए हमारा तनाव गायब हो जाता है और हम परम शांति का अनुभव करते हैं। इसका कारण ये है कि वहां के आध्यात्मिक वातावरण और संत वाणी के कारण हमारे अंदर थोड़ी देर के लिए ही सही आध्यात्मिकता का उदय होता है और जीवन के प्रति हमारा नजरिया बदल जाता है जिससे हमें आनन्द और शांति का अनुभव होता है।
जरा सोचिए कि अगर ये आध्यात्मिकता हमारे भीतर स्थायी रुप से जागृत हो जाय तो हमारा जीवन कितना शांत और सुखमय हो जाएगा।
-- द्वारा राज कुमार