Monday, 18 January 2021

नारियल का पेड़

 सालों बाद आज नारियल का पेड़ फलों से लदा है।

सुंदर, सुडौल, मीठे और मनमोहक।

कुछ अभी छोटे तो कुछ बृहद।

वही नारियल का पेड़ जो झूमता रहता है

मेरे फ्लैट की बाल्कनी के सामने।

वर्षों से जो हमारे सुख दुख का साथी।

झूमते रहते हैं उसके पत्ते और डालियां।

अक्सर वो बांहे पसार देता है हमारी बाल्कनी में।

जो हमारी शांत जीवन यात्रा का साथी।

हमारे थके मन को सुकून देने वाला।

कितने ही जीव जंतुओं को पनाह देने वाला।

वही नारियल जिस पर गिलहरियां दिन भर अठखेलियां करती दौड़ती भागती रहती ।


वही जिस पर कौवों ने कभी घोंसला बनाया था

और अंडे दिए थे बच्चों का कौतूहल बढ़ाते हुए।

आज सालों बाद यह फला फूला है।

क्या यह हमारे उज्ज्वल भविष्य का द्योतक है। 


Wednesday, 15 April 2020

रिवाइंड

कोरोना के चलते मानो पूरी दुनिया रिवाइंड मोड में आ गयी है।आजकल टेलीविजन खोलो तो पता चलता है कि लगभग सारे कार्यक्रम या सीरियल रिवाइंड होकर चल रहे हैं।चूंकि टीवी या फिल्मों की सूटिंग पर रोक है तो पुराने कार्यक्रमों को ही दुबारा तिबारा दिखाया जा रहा है।दूरदर्शन तो मानो रिवाइंड होकर अस्सी के दशक में पहुंच गया और रामायण एवं महाभारत आदि सीरीयलों को फिर से झाड़ पोंछ कर जनता के सामने परोसना शुरू कर दिया और दर्शकों ने भी उन्हें हाँथो हांथ लिया।
केवल टीवी के कार्यक्रम ही रिवाइंड मोड में नहीं आये बल्कि मानो पूरा भारत रिवाइंड मोड में आ गया।लोग घर में बंद होकर पुराने दिनों को याद कर रहे हैं।लोग सोच रहे हैं कि पहले जीवन में इतनी भाग दौड़ नहीं थी और आवश्यकताएं कितनी सीमित थी।पुराने जमाने में सामान्यतः लोग अपना काम स्वयं किया करते थे।परिवार के साथ ज्यादा समय व्यतीत करते थे।कोरोना के कारण मानो पुराने दिन लौट आये हों।लोगों को सूरज का निकलना और डूबना दिखाई देने लगा है।पक्षियों की आवाजें सुनाई देने लगी हैं।लोग घर पर बैठे बैठे पुराने अलबमों के पन्ने पलट रहे हैं।बहुत से लोग अपने अंदर की सृजनशीलता की तलाश करने लग गए हैं।कोइ कविता लिख रहा है तो कोई पेंटिंग बना रहा है और कोइ संगीत में हांथ आजमा रहा है।फिल्मी कलाकारों का तो कहना ही क्या।कोई बरतन मांज रहा है तो कोई झाडू पोंछा कर रहा है और कोई किचन में हांथ आजमा रहा है।
प्रकृति भी मानो रिवाइंड मोड में आ गयी है और स्वयं को 'रीबूट' कर रही है।गंगा और जमुना का पानी निर्मल हो गया है।समुन्द्र के किनारे पर जलीय जीवों का आगमन होने लगा है।शहरों की हवा साफ हो गयी है।प्रदूषण का कहीं अता पता नहीं है।यहां तक कि शहर की सड़कों पर जंगली जानवर स्वछन्द रूप से विचरण करने लगे हैं।खबर आई है कि एवरेस्ट पर हर साल हजारों लोग चढ़ाई करने वाले गायब हो गए हैं और कुछ दिनों के लिए ही सही,हिमालय की उत्तुंग चोटियां चैन की सांस ले सकेगी।लाखों गैलन पेट्रोल डीज़ल फूँकर हवा में जहर भरने वाले वाहन और वायु यान शांत बैठे हुए हैं।
चारों तरफ एक अजीब सन्नाटा पसरा हुआ है।इस सन्नाटे में मौत की आहट भी सुनाई पड़ती है।कोरोना यमदूत बन कर आया है।किसके प्राण हर लेगा कोई नहीं जानता।लोगों ने इस यमदूत के भय से घर के दरवाजे बंद कर लिये हैं।लोग अनिश्चितता, निराशा, अविश्वास, डर और चिंता के साथ जी रहे हैं।
कोरोना ने हमें स्वयं के अंदर झांकने का अवसर दिया है।हम क्या हैं और क्या होना चाहते हैं ,इसे सोचने का फिर से अवसर आया है।
यह विपत्ति हमें कहती है कि जरा रुको और सोचो -
क्या शीतल हवा का झोंका हमें आह्लादित करता है?क्या वर्षा की रिमझिम फुहारें हमें रस सिक्त करती हैं?क्या पक्षियों की चहचहाहट और नदी की कल कल ध्वनि हमारे कानों में मधुर संगीत रस घोलती है?क्या प्रकृति का हर क्षण बदलता रूप हमारी चेतना को एक नई अनुभूति प्रदान कर रहा है?क्या भोर की निःशब्दता में हमारे अंतर का ब्रह्म नाद जागृत होता है?
हमारे प्राचीन ग्रंथो और मनीषियों ने सांसारिकता के बजाय आध्यात्मिकता पर जोर दिया है,उस पर सोचने का समय आया है।क्या हम व्यर्थ भौतिकता में डूब चुके मन मस्तिष्क को 'रिवाइंड' कर पायेंगे।
द्वारा राज कुमार

Monday, 28 October 2019

'पोर पोर' पर


मनुष्य के शरीर पर जो लघु और कोमल बाल होते हैं उन्हें ही रोम या रोआं कहा जाता है. इन रोम की संख्या असंख्य होती है.इंसानों के अलावा जानवरों में भी रोम होते हैं. जीव वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो रोम का जीवों के शरीर के लिए बड़ा महत्त्व है. शारीरिक तापमान के नियंत्रण के लिए ये बड़ा काम आता है. इन रोमों की जड़ में अत्यंत लघु रोम छिद्र होते हैं जो पसीना छोड़कर तापमान को नियंत्रित करने में मदद करते हैं.देखा जाय तो यह त्वचा के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करता है. अपने देखा होगा कि जब अत्यधिक ठण्ड पड़ती है तो शरीर के रोयें खड़े हो जाते हैं.और ऐसा प्रायः सभी जीवों के साथ होता है.ऐसा करके शरीर अपने को ठण्ड से बचाता है.शरीर के रोयें अत्यधिक संवेदनशील होते हैं.किसी के शरीर पर कम तो किसी के ज्यादा रोयें होते हैं. शरीर के रोयें मानसिक दशा से भी बहुत प्रभावित होते हैं.भय, तनाव या रोमांच  की दशा में रोयें खड़े हो जाते हैं.
शरीर के रोम या कहे ‘रोम रोम’ शब्द का कवियों और साहित्यकारों के लिए बड़ा महत्व है.उसी तरह धार्मिक व्यक्तिओं और विद्वानों द्वारा भी इस शब्द का प्रयोग बहुतायत से किया जाता है. प्रेम या भक्ति की पराकाष्टा दिखाने वाले ये जताते हैं मIनो ईश्वर उनके रोम रोम में बसा हुआ है या वे किसी को रोम रोम से प्रेम करते हैं.उदहारण के लिए,तुलसीदास जी ने बाल कांड में लिखा है :-
"ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै 
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर रहै

पुनः एक भजन में कहा गया है " हे रोम रोम में बसने वाले राम ..."
एक भजन में कहा गया है - " रोम रोम पुलकित हो उठता है जिसके पावन नाम से ....."

कवि महेंद्र भटनागर अपनी कविता " कचनार " में लिखते हैं :-
“पहली बार
मेरे द्वार
कुछ ऐसा झूमा कचनार
रोम-रोम से जैसे उमड़ा प्यार!
अनगिन इच्छाओं का संसार!
पहली बार
ऐसा अद्भुत उपहार! ”
कवि अजंता शर्मा ने अपनी कविता मल्हार में लिखा है :-
“अचानक
किसी बसंती सुबह
तुम गरज बरस
मुझे खींच लेते हो
अंगना में .
मैं तुममें
***********
************
मेरा रोम रोम
तुम चूमते हो असंख्य बार .
अपने आलिंगन में
भिगो देते हो
मेरा पोर पोर.
मेरी अलसाई पलकों पर
शीत बन पसर जाते हो…”

कवि ज्योति के शब्द देखें :-
“मेरे
रोम रोम
पीर बहती रही।
मन की तलहटी जरखेज़
होती रही।।
पोर पोर कविता
उतरती रही ,
मर मर
मैं जीती रही
घास
सी ढीठ थी ,
उखाड़ी गई बारंबार
फिर फिर मैं
उगती रही।
मेरे रोम रोम
पीर बहती रही।
मेरे पोर पोर कविता उगती रही ।।“

एक और मिलता जुलता शब्द है :- पोर पोर .इस शब्द का प्रयोग भी हिंदी साहित्य में खूब हुआ है.जैसे विमल राजस्थानी की ये पंक्तियाँ देखिये :-

“टूट रहा है अंग-अंग रे पोर-पोर दुखती थकान से
पथ का कोई छोर दीखे
नभ-नयनों की कोर दीखे
निशि द्रुपदा के चीर-हरण-सी
अमर सुहासी भोर दीखे
मन ऊबा इस सन्नाटे से, साँय-साँय सुनसान से
पोर-पोर दुखती थकान से”

कहने का तात्पर्य यह है कि प्रेम या भक्ति या भावनाओं कि गहनता को प्रकट करने के लिएरोम रोम” शब्द का प्रयोग बहुतायत से किया जाता है और इसलिए ये शब्द सिर्फ एक जीव वैज्ञानिक अवधारणा का द्योतक ही नहीं है अपितु एक साहित्यिक अवधारणा का भी द्योतक है.

 द्वारा                राज कुमार

Monday, 7 January 2019

नया साल

काल नया, साल नया
जीवन शृंगार नया।
प्रीत नई, गीत नया,
दृष्टि नयी, स्वप्न नया।

जीवन की बगिया में,
खुश्बू नई, फूल नया।

रिश्तों की डोर नई,
मन का उत्साह नया।
नई ऊर्जा, संकल्प नये,
भाव नये, बोल नया।

कर्म नया, भाग्य नया।
जीवन का मार्ग नया,
नया विहान लाया है,
आया है साल नया।।
-- राज कुमार

Monday, 20 August 2018

केरल के सबक


               संदर्भ :केरल की आपदा
आदमी प्रकृति के कोहराम से परेशान है. मगर क्या किसी ने सोचा है कि प्रकृति भी आदमी के कोहराम से परेशान है. नदियों के रास्तों में वैध अवैध बिल्डिंग्स बनती गई. उनके डूब क्षेत्र में हवाई अड्डे और बड़े बड़े निर्माण बना दिए गए. नदियों पर अनावश्यक बांध बनाकर उनके प्रवाह को अवरुध्द किया गया. बारिश के पानी के निकलने वाले रास्तों को अवरुद्ध कर दिया गया।जंगलों को निर्ममता से काटा गया. उसका नतीजा सबके सामने है. जब अति हो गयी तो प्रकृति ने भी अपना रोद्र रूप दिखाया मानो वह अपने रास्तों में खड़े किए गए अवरोधों को ध्वस्त करना चाहती हो. दुर्भाग्य से इस प्राकृतिक आपदा से भी मनुष्य कोई सबक सीखने के लिए तैयार नहीं है. उत्तराखण्ड की त्रासदी से भी कुछ नहीं सीखा. वहां भी नदियों के रास्तों में अवैध निर्माण खड़े कर दिए गए थे पर बाढ़ में सारे बहा दिए गए. हमारे पुरखों ने पुराने जमाने में प्रकृति के शांत वातावरण में मंदिरों का निर्माण किया ताकि श्रद्धालु परमात्मा के साथ अपनी आत्मा का साक्षात्कार कर सके. पर आज इन तीर्थ स्थलों का भी व्यावसायीकरण हो चुका है और वे अनावश्यक निर्माण और भीड़ भाड़ से ग्रस्त हो चुके हैं. केदार नाथ की त्रासदी से क्या कोई सबक सीखा जा सका. लगता तो नहीं है. लेकिन मनुष्य को यह याद रखना चाहिए कि अगर वह प्रकृति के रास्ते में आएगा तो प्रकृति भी समय समय पर अपने रास्ते में आने वाले अवरोधों को ध्वस्त करते रहेगी और यह ध्वंस एक चेतावनी के रूप में सामने आएगा.
द्वारा राज कुमार 

Thursday, 9 November 2017

          तो कोइ बात बने
          ---------------------
मुकद्दर बदलने की बात करते हो
मुल्क की तक़दीर सवारने की बात करते हो
छोड़कर महलों की रंगीनियत औ ऐशो आराम,
पथरीली राहों पर कुछ कदम बढ़ाओ
तो कोइ बात बने.
माना कि हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा है
और तुम रोशनी फैलाने की बात करते हो
किसी अंधेरे कोने में एक दीपक ही सही
ख़ुद से जलाओ तो कोइ बात बने.
हर तरफ दर्द है, बेरुखी है, मगरूरी है
और तुम रूह की पाकिजगी की बात करते हो
तुम खुद मुस्कुराओ तो क्या यह काफ़ी है?
किसी गरीब के चेहरे पे हंसी लाओ
तो कोइ बात बने.
दुनिया बदलने की बात करते हो
आसमान में सुराख करने की बात करते हो
भरकर मन में विश्वास और फौलादी जज्बा
एक पत्थर तबीयत से उछालो तो कोइ बात बने.
द्वारा राज कुमार