संदर्भ :केरल की आपदा
आदमी प्रकृति के कोहराम से परेशान है. मगर क्या किसी ने सोचा है कि प्रकृति भी आदमी के कोहराम से परेशान है. नदियों के रास्तों में वैध अवैध बिल्डिंग्स बनती गई. उनके डूब क्षेत्र में हवाई अड्डे और बड़े बड़े निर्माण बना दिए गए. नदियों पर अनावश्यक बांध बनाकर उनके प्रवाह को अवरुध्द किया गया. बारिश के पानी के निकलने वाले रास्तों को अवरुद्ध कर दिया गया।जंगलों को निर्ममता से काटा गया. उसका नतीजा सबके सामने है. जब अति हो गयी तो प्रकृति ने भी अपना रोद्र रूप दिखाया मानो वह अपने रास्तों में खड़े किए गए अवरोधों को ध्वस्त करना चाहती हो. दुर्भाग्य से इस प्राकृतिक आपदा से भी मनुष्य कोई सबक सीखने के लिए तैयार नहीं है. उत्तराखण्ड की त्रासदी से भी कुछ नहीं सीखा. वहां भी नदियों के रास्तों में अवैध निर्माण खड़े कर दिए गए थे पर बाढ़ में सारे बहा दिए गए. हमारे पुरखों ने पुराने जमाने में प्रकृति के शांत वातावरण में मंदिरों का निर्माण किया ताकि श्रद्धालु परमात्मा के साथ अपनी आत्मा का साक्षात्कार कर सके. पर आज इन तीर्थ स्थलों का भी व्यावसायीकरण हो चुका है और वे अनावश्यक निर्माण और भीड़ भाड़ से ग्रस्त हो चुके हैं. केदार नाथ की त्रासदी से क्या कोई सबक सीखा जा सका. लगता तो नहीं है. लेकिन मनुष्य को यह याद रखना चाहिए कि अगर वह प्रकृति के रास्ते में आएगा तो प्रकृति भी समय समय पर अपने रास्ते में आने वाले अवरोधों को ध्वस्त करते रहेगी और यह ध्वंस एक चेतावनी के रूप में सामने आएगा.
द्वारा राज कुमार आदमी प्रकृति के कोहराम से परेशान है. मगर क्या किसी ने सोचा है कि प्रकृति भी आदमी के कोहराम से परेशान है. नदियों के रास्तों में वैध अवैध बिल्डिंग्स बनती गई. उनके डूब क्षेत्र में हवाई अड्डे और बड़े बड़े निर्माण बना दिए गए. नदियों पर अनावश्यक बांध बनाकर उनके प्रवाह को अवरुध्द किया गया. बारिश के पानी के निकलने वाले रास्तों को अवरुद्ध कर दिया गया।जंगलों को निर्ममता से काटा गया. उसका नतीजा सबके सामने है. जब अति हो गयी तो प्रकृति ने भी अपना रोद्र रूप दिखाया मानो वह अपने रास्तों में खड़े किए गए अवरोधों को ध्वस्त करना चाहती हो. दुर्भाग्य से इस प्राकृतिक आपदा से भी मनुष्य कोई सबक सीखने के लिए तैयार नहीं है. उत्तराखण्ड की त्रासदी से भी कुछ नहीं सीखा. वहां भी नदियों के रास्तों में अवैध निर्माण खड़े कर दिए गए थे पर बाढ़ में सारे बहा दिए गए. हमारे पुरखों ने पुराने जमाने में प्रकृति के शांत वातावरण में मंदिरों का निर्माण किया ताकि श्रद्धालु परमात्मा के साथ अपनी आत्मा का साक्षात्कार कर सके. पर आज इन तीर्थ स्थलों का भी व्यावसायीकरण हो चुका है और वे अनावश्यक निर्माण और भीड़ भाड़ से ग्रस्त हो चुके हैं. केदार नाथ की त्रासदी से क्या कोई सबक सीखा जा सका. लगता तो नहीं है. लेकिन मनुष्य को यह याद रखना चाहिए कि अगर वह प्रकृति के रास्ते में आएगा तो प्रकृति भी समय समय पर अपने रास्ते में आने वाले अवरोधों को ध्वस्त करते रहेगी और यह ध्वंस एक चेतावनी के रूप में सामने आएगा.