Friday 17 March 2017

मुठ्ठी में रेत

मुट्ठी में रेत की तरह फिसलती जा रही है जिन्दगी.
ख्वाब बहुत देखे, कुछ सच्चे कुछ झूठे.
कुछ ख्वाब हकीकत बने, कुछ हकीकत अफसाने.
कुछ ख्वाब ख्वाब ही रहे. कुछ ख्वाब हवा हो गए. मगर उनकी खुश्बू फ़ीजा में बाकी रही.
अब तो ख्वाब देखने से भी कतरा रही है जिन्दगी.
मुट्ठी में रेत की तरह फिसल जा रही है जिन्दगी.
रिश्ते बहुत बने. कुछ बन गए, कुछ बनाये.
कुछ निभ गए, कुछ निभाये गये.
कुछ टूट गए, फिर जुट भी गए.
कुछ जुटे भी तो बारीक निशां बाकी रहा.
कुछ ऐसे भी रिश्ते हैं जो अनकहे हैं, अबूझ हैं.
कुछ रिश्ते उनसे जो अब इस फानी दुनिया से दूर जा चुके
मगर इनकी खुश्बू हवाओं में जिन्दा है.
‌अब तो रिश्ते बनाने से भी कतरा रही है जिन्दगी.
मुट्ठी में रेत की तरह फिसल जा रही है जिन्दगी. .
काम बहुत किए, कुछ सही कुछ गलत
कुछ स्वयं किए, कुछ करवाए गए
कुछ से खुशी मिली, कुछ से पश्चाताप हुआ
कुछ कर्मो से मन की तृप्ति मिली, कुछ से आत्मा की
कर्म और भाग्य के भंवर में फंसकर
डूबती उतराती जा रही है जिन्दगी
मुट्ठी में रेत की तरह फिसलती जा रही है जिन्दगी.
प्यार मिला भी, प्यार किया भी
कुछ प्यार सच्चे थे कुछ झूठे
कुछ प्यार सपने ही रहे
कुछ सपने प्यारे लगे
कुछ ने दर्द दिए, कुछ ने दर्द बांटे
प्यार और दर्द की परतों में
फंसती निकलती जा रही है जिन्दगी
हर रोज नया फलसफा सिखा रही है जिन्दगी
मुट्ठी में रेत की तरह फिसलती जा रही है जिन्दगी.
राज कुमार

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