Wednesday 15 April 2020

रिवाइंड

कोरोना के चलते मानो पूरी दुनिया रिवाइंड मोड में आ गयी है।आजकल टेलीविजन खोलो तो पता चलता है कि लगभग सारे कार्यक्रम या सीरियल रिवाइंड होकर चल रहे हैं।चूंकि टीवी या फिल्मों की सूटिंग पर रोक है तो पुराने कार्यक्रमों को ही दुबारा तिबारा दिखाया जा रहा है।दूरदर्शन तो मानो रिवाइंड होकर अस्सी के दशक में पहुंच गया और रामायण एवं महाभारत आदि सीरीयलों को फिर से झाड़ पोंछ कर जनता के सामने परोसना शुरू कर दिया और दर्शकों ने भी उन्हें हाँथो हांथ लिया।
केवल टीवी के कार्यक्रम ही रिवाइंड मोड में नहीं आये बल्कि मानो पूरा भारत रिवाइंड मोड में आ गया।लोग घर में बंद होकर पुराने दिनों को याद कर रहे हैं।लोग सोच रहे हैं कि पहले जीवन में इतनी भाग दौड़ नहीं थी और आवश्यकताएं कितनी सीमित थी।पुराने जमाने में सामान्यतः लोग अपना काम स्वयं किया करते थे।परिवार के साथ ज्यादा समय व्यतीत करते थे।कोरोना के कारण मानो पुराने दिन लौट आये हों।लोगों को सूरज का निकलना और डूबना दिखाई देने लगा है।पक्षियों की आवाजें सुनाई देने लगी हैं।लोग घर पर बैठे बैठे पुराने अलबमों के पन्ने पलट रहे हैं।बहुत से लोग अपने अंदर की सृजनशीलता की तलाश करने लग गए हैं।कोइ कविता लिख रहा है तो कोई पेंटिंग बना रहा है और कोइ संगीत में हांथ आजमा रहा है।फिल्मी कलाकारों का तो कहना ही क्या।कोई बरतन मांज रहा है तो कोई झाडू पोंछा कर रहा है और कोई किचन में हांथ आजमा रहा है।
प्रकृति भी मानो रिवाइंड मोड में आ गयी है और स्वयं को 'रीबूट' कर रही है।गंगा और जमुना का पानी निर्मल हो गया है।समुन्द्र के किनारे पर जलीय जीवों का आगमन होने लगा है।शहरों की हवा साफ हो गयी है।प्रदूषण का कहीं अता पता नहीं है।यहां तक कि शहर की सड़कों पर जंगली जानवर स्वछन्द रूप से विचरण करने लगे हैं।खबर आई है कि एवरेस्ट पर हर साल हजारों लोग चढ़ाई करने वाले गायब हो गए हैं और कुछ दिनों के लिए ही सही,हिमालय की उत्तुंग चोटियां चैन की सांस ले सकेगी।लाखों गैलन पेट्रोल डीज़ल फूँकर हवा में जहर भरने वाले वाहन और वायु यान शांत बैठे हुए हैं।
चारों तरफ एक अजीब सन्नाटा पसरा हुआ है।इस सन्नाटे में मौत की आहट भी सुनाई पड़ती है।कोरोना यमदूत बन कर आया है।किसके प्राण हर लेगा कोई नहीं जानता।लोगों ने इस यमदूत के भय से घर के दरवाजे बंद कर लिये हैं।लोग अनिश्चितता, निराशा, अविश्वास, डर और चिंता के साथ जी रहे हैं।
कोरोना ने हमें स्वयं के अंदर झांकने का अवसर दिया है।हम क्या हैं और क्या होना चाहते हैं ,इसे सोचने का फिर से अवसर आया है।
यह विपत्ति हमें कहती है कि जरा रुको और सोचो -
क्या शीतल हवा का झोंका हमें आह्लादित करता है?क्या वर्षा की रिमझिम फुहारें हमें रस सिक्त करती हैं?क्या पक्षियों की चहचहाहट और नदी की कल कल ध्वनि हमारे कानों में मधुर संगीत रस घोलती है?क्या प्रकृति का हर क्षण बदलता रूप हमारी चेतना को एक नई अनुभूति प्रदान कर रहा है?क्या भोर की निःशब्दता में हमारे अंतर का ब्रह्म नाद जागृत होता है?
हमारे प्राचीन ग्रंथो और मनीषियों ने सांसारिकता के बजाय आध्यात्मिकता पर जोर दिया है,उस पर सोचने का समय आया है।क्या हम व्यर्थ भौतिकता में डूब चुके मन मस्तिष्क को 'रिवाइंड' कर पायेंगे।
द्वारा राज कुमार

No comments:

Post a Comment